Saturday, 26 December 2015

हे अटल ( कवि हृदय )

माननीय अटल जी! जन्मदिन की अनन्त शुभकामनाओं के साथ भेंट स्वरूप यह पंक्तियाँ आपको सर्मपित कर रहीं हूँ  :

हे अटल !  ( कवि हृदय )
तुम्हारी
एक कोशिश
और
बालहठ सी वो जिद थी,
हिन्द - पाक मन एक बने
प्रेम - लौ से हो प्रज्वलित
पर
उठे सवाल कुछ
पुतले फूँके
जन आक्रोश भी कुछ जागा
न हिन्दू 
न मुसलमान
थे नयी नसल के मंसूबे
न खुले कभी
सरहद की बाढ़
बस पनपे यों
नफरत के फूल
तब
सफल हुए तुम
इस कोशिश में
जब -
अँकुर फूटे
क्रिकेट खेल बन,
खेल भावना
मुख़र हुयी
गेदों की तालों में
बजकर,
आतिशबाजी और जन - कोलाहल
बना दृश्य
विहंगम था
जब
शीष चढ़ा सौरव - सेना के
ताज जीत का
सुन्दर था,
और सुन्दर था
पाक जमीं पर
हर पठान
जब शान्त रहा
न उद्धेलित
न विचलित था
न कलुषित उसका
मानस था
हिन्द - शेर भी सौम्य बने
जब
स्वीकारा सैमसंग कप था।
24  मार्च सन् 2004
एक इतिहास सुनहरा है
पाक है हर दिल
हिन्द - पाक का
बीमार नस्ल आतंकी है।
सब पहचाने
चप्पा जाने
यही तुम्हारा
ध्येय बने
ना कुर्सी का लालच हो
न सत्ता मूल्य से ऊपर हो ( जीवन मूल्य )
निज निर्मल मन से
कवि हृदय
तुम बढ़े चलो, तुम बढ़े चलो,
हे अटल !
डटो तुम अटल रहो
सरहद पर फूल उगाने तक।

      ये मेरे दिल के उदगार हैं जो मैनें एक सच्चे कर्मठ और देशभक्त वयक्ति के लिए पन्नों पर उतारे थे। कहने की ज़रूरत नहीं कि इसे मैनें पन्नों पर कब उतारा था।
     हाँ ! सभी लोगों से नम्र निवेदन है कि इसे राजनीति से न जोड़ा जाए क्योंकि यह अभिव्यक्ति उस समय की गई है जब माननीय अटल जी प्रधानमंत्री थे लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि वो किस पार्टी के नेता थे।
                                  नीलिमा कुमार
       

Tuesday, 22 December 2015

निर्भया का गुनहगार : नाबालिक किस परिप्रेक्ष्य में ?

दो दिन पहले face book पर ही दो पोस्ट देखी। लिखा था - असहिष्णु खान की फिल्म छोड़कर पैसे बचाकर कुछ नया करते लोग।  दूसरी पोस्ट थी - दिलवाले न देखकर यहाँ के लोगों ने एक अनूठे कार्य को अंजाम दिया।
         दोस्तों ! शाहरूख़ या आमिर की जिन बातों पर हम सबने मथानी बनकर देश को मथ डाला और नफरत से ही सही पर परिणामस्वरूप एक नेक काम हुआ और बहुत से भूखे इन्सानों का पेट भर गया , तो आपको नहीं लगता कि अगर हम सब उसी शिध्द्त से एक बार फिर मथानी चला लें तो शायद निर्भया के गुनहगार उस अफरोज को मुकम्मल सजा दिला पाएं और निर्भया को इन्साफ ? हमारे कानून में नाबालिक की उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष की बात जो चल रही है , क्या कानून का ये बदलाव काफी होगा ? मेरे विचार से जो शख़्स 17 वर्ष की उम्र में बलात्कार कर सकता है वो इसका मतलब तो ज़रूर  जानता ही होगा। ये कोई मोटरसाईकिल या कार चलाना तो है नहीं कि balance बिगड़ गया इसलिए गिर पड़े। सोचिए ! क्या बलात्कार के सन्दर्भ में एक लड़के की आयु पर विचार किया जाना उचित है , वो भी आज के परिप्रेक्ष्य में ? आज जबकि sex इतना खुला विषय बन चुका है एवं internet के द्वारा जो जानकारी चाहिए उसे कोई भी , कभी भी प्राप्त कर सकता है। अगर मेरे विचार से आप सहमत हों तो अपने तरीके से आवाज़ ज़रूर उठाएं।

Saturday, 12 December 2015

corporate social responsibility, dangers of non recycled paper, ink ingestion, paper waste management, recycle paper, responsible recycling, toxic effect of ink, toxic waste

                  हाल ही में कहीं पढ़ा था - सुबह की चाय से  शुरू हुआ ताज़ा अखबार रात तक रद्दी में तब्दील हो जाता है। अब देखिए .... अखबार चाय के साथ देशभर की खबरें बताता है, और उसके बाद वही अखबार कुछ लोगों के लिए बाथरूम में समय बिताने का सबसे अच्छा  साधन साबित होता है। तो कहीं यही अखबार बस अड्डे या रेलवे प्लेटफार्म पर चादर की जगह बिछाकर सोने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।सब्ज़ी काटने ,  पूरी छानकर निकालने या फिर पानी ,  तेल वगैरह गिर जाने पर उसे साफ करने आदि का काम भी इसी अखबार से ही किया जाता है। यहाँ तक कि होटलों में भी किचन टाॅवेल की जगह यह अखबार अपना किरदार बख़ूबी निभाता है । हम कह सकते हैं कि इस अखबार के दो पहलू हैं और दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। इसके बाद शुरू होती है कहानी अखबार के रद्दी बनने की।इन सब प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद जब ये अखबार कबाड़ी वाला ले जाता है तो वहाँ इसका हाल बद से बदहाल हो जाता है। हम सभी जानते हैं कि एक कबाड़ी वाला अपना सामान किस तरह और कैसी जगहों पर रखता है।
                आइए अब देखें --  रद्दी अखबार के खरीदार कौन लोग होते हैं ? स्टेशन , बस अड्डे , सड़क या बाज़ारों में खड़े हुए खोमचे वाले आदि।  लाखों गरीब परिवारों की महिलाएँ या बच्चे अपने परिवार का पेट पालने के लिए यहीं केे खरीदे हुए अखबारों से लिफाफे बनाते हैं , जो बेचे जाते हैं  मिठाई , परचून की दुकानों के साथ -  साथ खोमचे वालों को। सोचकर देखिए - क्या खाने की चीजों के लिए इन लिफाफों का इस्तेमाल सही है ? --
( 1 )  इन्हीं लिफाफों में हम समोसा , खस्ता , पूरी , जलेबी, भेलपूरी आदि तो खाते ही हैं , कहीं - कहीं तो  कटे हुए फल भी दिए जाते हैं। गन्दे अखबार से बने इन लिफाफों में मिलने वाली खाद्य सामग्री स्वास्थ्य के लिए कितनी सुरक्षित होगी ? यहाँ  विशेष तौर पर कहना चाहूँगी कि मैं मात्र एक आम वर्ग की बात कर रही हूँ खास वर्ग की नहीं क्यों कि हमारे देश में आम वर्ग का ही प्रतिशत ज़्यादा है।
( 2 )  अखबारों में इस्तेमाल होने वाली स्याही। आपको ध्यान होगा कि जो सामान ज़रा भी गीला होता है खासकर पूरी जलेबी आदि , उस पर तो अखबार में छपे अक्षर तक छप जाते हैं। अखबार की इस स्याही में कुछ ऐसे तत्व हैं जो मानव जाति के लिए काफी खतरनाक हैं। जैसे -
         आजकल खाद्यपदार्थ की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। किस चीज़ में कितना  प्रोटीन , आयरन एवं  न्यूट्रीशियन है , अधिक तेल या कैलोरीज़ तो नहीं है आदि आदि। यह सब तो हम लोग सोचते हैं किन्तु यह नहीं सोचते कि बाहर जो खा रहें हैं उसे किस प्रकार दिया गया है। साधारणतया street halker सामान अखबार से बने पैकेट या सीधे अखबार पर ही रख कर दे देते हैं।क्या आप जानते हैं -- जब गरम पकौड़ी , समोसा , कबाब , परांठा , जलेबी या गीली भेलपूरी इत्यादि जैसे ही अखबार पर रक्खी जाती है , तो गरम तेल की वजह से तेल एवं अखबार की इंक दोनों के मध्य एक रासायनिक प्रक्रिया होती है जिसकी वज़ह से बहुत तेजी के साथ इंक में समाहित कुछ खतरनाक chemical तेल में पहुँच जाते हैं , जो हमें दिखाई नहीं पड़ते और उसे हम खा लेते हैं । इंक में मौजूद कुछ chemical एवं उसके दुष्प्रभाव इस प्रकार हैं - कुछ organic chemical जिन्हें arylamines कहा जाता है जैसे -  Benzidine , Naphthylamine , Aminobiphenyl आदि chemical अतिसंवेदन रूप से कारण बनते हैं  Bladder और  Lung cancer के लिए । इसके अतिरिक्त कुछ hazardous chemicals होते हैं जिनकी वज़ह से तीव्र सिरदर्द , pulse rate का बढ़ना , शरीर में ऊर्जा का लुप्तप्राय: होना ,  skin irritation , nervous system पर आघात होना । सार रूप में ink की वजह से मृत्यु नहीं हो सकती है पर ऊपर दी गई कुछ बीमारियों की चपेट में व्यक्ति ज़रूर आ सकता है । The food and agriculture organisation / world health organisation joint expert committee  का यह मानना है कि food additives  में  MOSH की safe upper limit होती है  0.6 mg/kg . इसकी कम या ज़्यादा मात्रा वृद्ध , युवा , बच्चे एवं अन्य लोगों में जिनमें , vital organs  एवं  immune system पहले से ही  दुष्प्रभावित हों , कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है । कृपया पूर्ण जानकारी हेतु निम्न  site  पर  log  on  करें --
Healthy  eating - watch out for poisouons packaging   published in DAWN sunday magazine , may 25 , 2014 .   Queries to Dawn.com's editorial team
ये समस्त जानकारियाँ  Net  के साथ साथ Dr. Sangeeta Bhatia , medical officer, National Homeopethic Medical College , Lucknow द्वारा प्राप्त हुयी हैं। साभार धन्यवाद।
            ये तो थे मानव जाति पर अखबार एवं उसकी स्याही से होने वाले नुकसान। अब जानते हैं कि किस तरह के पेपर से recycling के बाद कौन सा पेपर बनता है।
1 - अखबार से अखबार का कागज़ ही बनता है।
2 - copy से copy का पेपर ।
3 - किताब , loose n waste पन्ने , card , juice carton ,  मिठाई के डिब्बे इत्यादि की sooping करी जाती है अर्थात लुग्दी बनाई जाती है जिससे जिल्द तैयार होती है । इसी जिल्द से काॅपी किताब के मोटे hard cover , गत्ते की sheet , मिठाई और जूस इत्यादि के डिब्बे तैयार किए जाते हैं। घबराईए नहीं खाने पीने से सम्बन्धित जितने भी डिब्बे तैयार किए जाते हैं , उनमें अन्दर से foil sheet या cling film ( जिससे सैन्डविच या अन्य खाने का सामान wrap किया जाता है )  को चढ़ाया जाता है जिससे खाद्य पदार्थ जिल्द के सम्पर्क में ना आने पाएं ।
4 - Brown paper sooping की गई जिल्द से ही बनता है । उसके लिए सबसे पहले अखबार से ink को अलग किया जाता है और तब जिल्द तैयार की जाती है । इसलिए खाद्य सामग्री के लिए brown paper के लिफाफे पूर्णतया उपयुक्त हैं ।
 5 -  लिफाफे और डिब्बे खाद्य पदार्थ के योग्य हैं या नहीं , यह जानने के लिए उन्हें बीच से फाड़ेगें तो वो फटेगें ही नहीं । इस article में recycling से जुड़े जितने भी तथ्य आपके समक्ष रख पायी हूँ वो हिन्दुस्तान के recycling wing के collection center में कार्यरत श्री अमित कुमार भगत द्वारा प्राप्त हुयी हैं। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
               इतनी सारी जानकारी के बाद हम चुप तो नहीं बैठ सकते, कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा और करना भी हमें और आपको ही है। बस करना इतना ही होगा कि थोड़ी सी जागरूकता पैदा करनी होगी स्वयं के साथ - साथ समाज में भी। हमें ये काम इसलिए भी करना है कि जिस आम आदमी की बात मैं कर रहीं हूँ वो खुद अपने लिए ये आवाज़ नहीं उठा सकता । उसे तो दो व़क्त की रोटी मिल जाए वही बहुत है। ये ज़िम्मेदारी हमें आपको ही निभानी होगी। करना क्या है ? -  हमें आपको न करना है वहाँ पर, जहाँ हमें खाने का सामान अखबारों में दिया जा रहा है , साथ ही दुकानदारों को पत्ते वाले दोने , disposable  item एवं brown paper के इतेमाल के लिए भी समझाना होगा। जागरूकता पैदा करने के लिए अपने घर , घर की नौकरानी , अपने दोस्तों एवं मिलने वालों को इसकी जानकारी दें । साथ ही उनसे कहें कि अपने जानने वालों को वो लोग भी बताएं । यदि हम किन्हीं संस्थाओं को जानते हैं तो उन्हें बताकर भी पहले कदम की शुरूआत कर सकते हैं। उन्हें भी इससे जोड़ें ।धीरे - धीरे कुछ तो बदलेगा ही। ज़ाहिर है हमारी सरकार को तो इसमें आना ही पड़ेगा , उसके बिना तो यह बदलाव सम्भव है ही नहीं  किन्तु हर काम सरकार की ही ज़िम्मेदारी हो ऐसा सोचना तो गलत होगा । इसलिए पहल हमीं से हो तो क्या बुरा है। हम पूरे देश की नहीं पर मात्र अपने शहर के वारे में तो सोच ही सकते हैं।
       कुछ साल पहले रेलमंत्री बनते ही श्री लालू प्रसाद यादव ने ट्रेनों में कुल्हड़ में चाय बेचने का सख़्त नियम पारित किया। काँच के गिलास या disposable में चाय पर पाबन्दी के साथ जुर्माना भी लगा दिया , इससे प्रत्यक्ष तौर पर जो लाभ मिले वो थे --
1) पूर्णतया hygenic
2) मिट्टी के कुल्हड़ मिट्टी में मिल गए
3) पेपर या प्लास्टिक से एकत्रित होने वाले कूड़े में कमी
4) असंख्य व्यक्तियों को रोजगार का मिलना
     इस योजना का ना चल पाना सरकार या लालू जी का नुकसान नहीं बल्कि हमारा नुकसान है। ख़ैर ....लालू जी तो बधाई के पात्र हैं ही। इसी तरह ऐसी ही एक मुहिम चलायी  है  हिन्दुस्तान अखबार , लखनऊ , उत्तर प्रदेश ने । पुरानी रद्दी को recycle करके पुनः अखबार और काॅपी किताबों के लिए कागज़ बनाने की । इसके लिए हिन्दुस्तान अखबार वाले घर - घर जाकर पुरानी रद्दी खरीदते हैं वो भी कितने आसान तरीके से। पूरी रद्दी को एक साथ अपने साथ लाई डोरी से बाँधकर काँटे से उठा लेते हैं ।अब आप मीटर पर खुद ही पढ़ लीजिए । हाँ .... ये सही है कि एक कबाड़ीवाला एक किलो रद्दी का भाव लगाता है 12 रूपए किलो जबकि ये लोग देते हैं मात्र 9 रूपए किलो , परन्तु सोचिए आपका समय, आपकी ऊर्जा और साथ ही उससे की गई माथापच्ची एवं 10 किलो का 8 किलो बना देना वो भी आपकी आँखों के सामने क्या आपको परेशान नहीं करता है । अब हमें चाहिए कि 12 रूपए के फेर से ऊपर उठें और स्वहित को पीछे छोड़कर जनहित में कुछ सोचें । यकीन मानिए अखबार में दिए खाने को ना करके और घर की रद्दी को recycle के लिए देकर , हम घर बैठे - बैठे अपने देश की बहुत बड़ी सेवा कर सकते हैं। मसलन  ----
1) पेड़ों की छाल से बनाए जाने वाले कागज़ की काफी ज़रूरत recycle हुए कागज़ से पूरी होने लगेगी तो शर्तिया पेड़ों की कटाई में कमी आएगी।
2) कूड़ेदान में फेका गया कागज़ गलकर सड़ जाता है । Recycle नहीं हो सकता इसलिए बेवजह कूड़ेदान में कागज़ न फेकें।
3)  अगर परचून या मिठाई की दुकानों पर brown paper के लिफाफों में सामान मिलने लगे तो वो सामान खाने योग्य होगा ।
4) बस या रेलवे स्टेशन अथवा बाज़ारों में जो खोमचे वाले बैठते हैं , वो पत्ते वाले दोनों का इस्तेमाल करें तो अन्य किसी भी चीज़ से ये सस्ते पड़ेगें साथ ही हज़ारों पत्ते पेड़ों से झड़कर मिट्टी में मिल जाते हैं , उनका सही इस्तेमाल भी हो जाएगा ।
5) झूठे पत्तल - दोनों को किसी भी जंगल में फेक दिया जाए तो वो स्वतः ही मिट्टी में मिलकर खाद बन जाएंगें , अर्थात हरियाली बढ़ेगी तो पर्यावरण शुद्ध होगा।
6) सबसे अहम् बात कि स्वच्छ एवं शुद्ध खानपान के साथ - साथ असंख्य बेरोज़गारों को रोज़गार मिलेगा ।
      वैसे तो  recycling की मुहिम हिन्दुस्तान अखबार , उत्तर प्रदेश अपने GO GREEN Project जो कि पर्यावरण से सम्बन्धित है, पिछले 4 वर्षों से लखनऊ में चला रहा है किन्तु मैनें अपने इस artical को recycling से जोड़कर एक आम आदमी के स्वास्थ्य को मद्देनज़र रखते हुए लिखा है। मेरी प्रत्येक अखबार से अपील है कि वो भी देशहित में ऐसी मुहिम को अंजाम दें और अपना यह कदम पूरे भारतवर्ष के लिए उठाएँ। फिलहाल तो इतना ही कहूँगीं कि सभी लोग हिन्दुस्तान अखबार से  अपने अपने शहर के लिए इस सुविधा की माँग करें क्यों कि अभी यह सुविधा मात्र लखनऊ शहर में ही चल रही है।
         दोस्तों ! अगर मेरी बात तथ्यपूर्ण हो और आपको सही लगी हो,  तो आईए अपने देशहित में  एक कदम हम भी बढ़ाएं। अपने घर से शुरूआत करें। अपने घर की रद्दी recycling हेतु दें। लोगों को इससे जोड़ें और जानकारी दें। साथ ही जो जिस प्रकार से सक्षम एवं समर्थ हैं वो इस बात को आगे तक ले जाने में कृपया अपना योगदान अवश्य दें। आपके विचारों एवं सुझावों का स्वागत है। आपके सुझाव मेरे लिए प्रेरणादायक होंगें।          मेरा email ID -  neelima.64.kumar.@gmail.com
लखनऊ निवासियों की सुविधा हेतु सम्पर्क नम्बर  है -
Hindustan off. - 9235402342 
अमितकुमार - 9336628342                                
ये गाना तो आपने सुना ही होगा -
      साथी हाथ बढ़ाना ,
      एक अकेला थक जाएगा
       मिलकर साथ निभाना ,
       साथी हाथ बढ़ाना
                                                                                                      Neelima Kumar

Tuesday, 1 December 2015

क्या हम वास्तव में मर्यादित हैं ?

लेखक और मीडिया , दोनों ऐसी ताकत हैं जो आवाम की सोच की दिशा ही बदल देती है। सोचिए ! जिस वक्तव्य के लिए आज आमिर खान को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है और उसे देशद्रोही करार दे दिया है , बकौल मीडिया  वो आमिर की पत्नी किरण राव ने कहा था। वो तो हिन्दू है , उसे देशद्रोही क्यों नहीं कहा गया ? मैं हिन्दू हूँ पर उससे पहले एक हिन्दुस्तानी । हिन्दुस्तानी सभ्यता कहती है कि बेगुनाह को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए , चाहे वो किसी भी धर्म का हो।
     मेरा role model फिल्म का हीरो नहीं बल्कि देश के लिए शहीद होने वाला एक जवान है। राजनीति से बहुत दूर हूँ । न किसी का विरोध न तरफदारी , सिर्फ एक देशभक्त हिन्दुस्तानी हूँ। मैनें जो लिखा उसका तात्पर्य मात्र इतना था कि क्या किसी का एक कथन हमारी अखण्डता और गौरव को इतना विचलित कर सकता है कि हम अपनी मर्यादा , भाषा और सन्तुलन सब कुछ खो बैठें ? हम सब पढ़े लिखे लोग हैं फिर भी यह कहीं नहीं झलक रहा कि हमारी स्वयं की विचारशक्ति का इस्तेमाल हो रहा है। क्या किसी हिन्दू icon ने कभी कुछ ऐसा नहीं कहा या किया कि उसे आतंकी या देशद्रोही करार दिया जा सके ? मैं ऐसा सोचती हूँ कि हिन्दू , मुसलमान , सिख या ईसाई आतंकी नहीं होता है बल्कि विकृत मानसिकता का शिकार  व्यक्ति आतंकी है जिसकी कोई कौम नहीं होती ।
        यह पोस्ट लिखने का मेरा मकसद किसी को चोट पहुँचाना या अपनी सफाई देना बिलकुल नहीं है। दरअसल जयपुर के एक रचनाकार की रचना और आमिर के साथ कुत्ते के कार्टून ने मुझे चोट पहुँचायी क्योंकि भारत की संस्कृति और सभ्यता इसकी इज़ाजत नहीं देती।बस मेरा एक विचार है कि सरहद पर की गई लड़ाई का मकसद दूसरा होता है पर इस व़क्त देश में जिस प्रकार क्रिया प्रतिक्रया चल रही है उससे यही प्रतीत हो रहा है कि आज हमारा देश भी अन्य देशों की तरह ही व्यवहार कर रहा है और अपने गौरव को भूलकर उन्हीं जैसे निम्न स्तर पर उतर कर उनसे मुकाबला कर रहा है , क्या ये हमारे देश और हमारी मानसिकता का पतन नहीं है ?
यह उन लोगों के लिए है जो भेड़चाल अपना रहें हैं।

Monday, 23 November 2015

अमन के रंग : सरहद के उस पार या इस पार , इन्सानियत : सबसे बड़ा धर्म

" अमन के रंग " एक  Indo - Pak exibition जो इस व़क्त चल रही है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के इन्दिरा गाँधी प्रतिष्ठान में । एक अति सुन्दर प्रयास है दो देशों के बीच अपनी कला एवं संस्कृति को साझा कर एक दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को प्रकट करने का । साधुवाद ।
         अपने कुछ अनुभव आप सबके साथ बाँटना चाहती हूँ। प्रतिष्ठान के प्रांगण में प्रवेश करते ही हिन्द - पाक के ज़ाएके की खुश्बू , बेहतरीन नक्काशी , ख़ूबसूरत कारीगरी ने मन मोह लिया। या यूँ कहें कि हिन्द - पाक की सभ्यता एवं संस्कृति की भव्यता का सुन्दर संगम वहाँ देखने को मिला। ये तो वो था जो मेरी आंखों और मन को भाया मगर किसी ने मेरे दिल को छुआ । मैं बात कर रहीं हूँ कराँची से आई मोहतरमा असमां रहमान जी की। सबसे पहले उन्हीं से मुलाकात हुयी। उन्होंने अपनी सोच को अपने हाथों से बनाए गहनों में पिरोया था , जो याद दिला रहा था उन रानी , महारानियों एवं सुन्दरियों की , जो फूलों के गहनों से अपने सौन्दर्य को संवारा करती थीं। उन ख़ूबसूरत गहनों एवं थालियों को देखकर मुझे परिवर्तन सेवा संस्थान , कानपुर , उत्तर प्रदेश में रहने वाली महिलाओं एवं लड़कियों का ख़याल आया। मैंनें सोचा इन ख़ूबसूरत चीजों को अगर मैं अपने कैमरे में कैद कर लूँ , तो उन लड़कियों को इस हुनर को सिखाया जा सकता है। यह कला उनके लिए जीविकोपार्जन का साधन बन सकती है , मगर इसके लिए असमां जी की सहमति आवश्यक थी , क्योंकि अपने डिजाईन की फोटो तो कोई भी सुनार नहीं लेने देता। मैंनें अपनी दुविधा असमां जी के सामने रक्खी। सबसे पहले मैंनें अपने एवं उस संस्था में रह रहीं लड़कियों व महिलाओं के वारे में असमां जी को बताया , ये भी बताया कि वो वहाँ किन हालातों से गुज़रकर पहुँची या पहुँचायी जाती हैं। शायद मेरी ज़ुबां से निकली बात मेरी आँखें भी कह रहीं थीं , तभी तो संस्था से जुड़कर जिस दर्द को मैं छ: सालों से महसूस कर रही थी , वही दर्द मुझे उस एक पल में उनकी आँखों में दिखा। " इल्म को तो जितना बाँटो उतना ही बढ़ता है। सब अपने नसीब का ही खाते हैं। मेरे पास इसका सामान नहीं है अन्यथा मैं आपको ऐसे ही दे देती। वीसा भी खत्म होने वाला है,  नहीं तो मैं आपके साथ कानपुर चलती और दो - तीन दिन में ही उन्हें ये सब कुछ सिखा देती।"-  ये शब्द थे असमां जी के। एक वादा भी किया कि अगली बार वो मेरे साथ कानपुर ज़रूर चलेंगीं और ये हुनर सबको सिखाएंगीं। उन्होंने अपने stall की photo लेने की दिल से अनुमति दी। असमां जी की मैं तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
         यहाँ एक और बात का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है। आगा हम कुछ कपड़ों की दुकानों पर गए । वहाँ हमने बस इतना ही पाया कि जो कारीगरी हमारे हिन्दुस्तान  में होती है वही पाकिस्तान में भी, बस नाम अलग है। जैसे - चिकन के काम में बारीक तेपची के काम को वहाँ मुल्तानी काम कहते हैं । उसी तरह एक ख़ास किस्म का बारीक कपड़ा जो यहाँ ठण्डी जगहों पर ही बन पाता है , बिलकुल उसी डिज़ाईन और उसी techture का कपड़ा पाकिस्तान में भी ठण्डी जगहों पर ही बन पाता है। यह भी कह सकते हैं कि अगर हमें पता न होता तो हम उस कपड़े को हिन्दुस्तान में बना हुआ ही समझते। जूतियों और नागरों पर  जैसी कढ़ाई यहाँ होती है बिलकुल वैसी ही कढ़ाई पाकिस्तान में भी की जाती है।
      तो अब आप ही बताएं कि हिन्द - पाक के बीच क्या अलग है ? हमें तो वहाँ जाकर एक पल को भी ऐसा नहीं लगा कि हमारे बीच सरहद की दीवार की परछाई भी हो । जितनी उत्सुकता हमें थी कि इस काम को क्या कहते हैं , तो उतनी ही उत्सुकता उस मुस्लिम भाई को भी थी जो पाकिस्तानी था। ठीक मेरी ही तरह उन्होंने भी " तेपची " नाम  को चार बार पूछकर याद किया। जो दर्द मेरे अन्दर है उन मासूम लड़कियों के लिए वही  दर्द कराची से आई असमां जी ने भी एक पल में अपने अन्दर महसूस किया।
         जागो ! मेरे हिन्दू एवं मुसलमान भाई बहनों जागो ! खुद सोचो - जब हम सबमें इन्सानियत एक है , जज़्बा और जज़्बात एक हैं , हर दर्द का रूप एक है , तो क्या हिन्दू और क्या मुसलमान ? ध्यान देने वाली  बात बस इतनी है कि इन्सान तो एक है। मुझे लगता है कि  सरहद के दोनों तरफ आवाम तो एक सा दिल रखती है और एक ही ख़्वाब दखती है अमन और चैन का। यकीन जानिए हिन्दू - मुसलमान में खींची गई यह दीवार आवाम ने तो नहीं ही खींची होगी। ये तो वो चन्द लोग होंगें जो धर्म के नाम पर अपना मतलब सिद्ध कर रहें हैं। अगर मैं कहूँ  कि ये खास तबका अस्वस्थ , बीमार एवं मानसिक विकृति का शिकार है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
      तो आईए ! संकल्प लें कि बीमार मानसिकता वाले इस खास वर्ग के मंसूबे को हम लोग जीतने नहीं देंगें और सरहद के दोनों तरफ अमन शान्ति बनाए रखने के लिए अपना अपना प्रयास करते रहेंगें। जो मैनें महसूस किया है उसे आप तक पहुँचा रहीं हूँ। लोगों के दिलों में इन्सानियत का एक मुस्कुराता फूल खिलाने की मेरी यह छोटी सी कोशिश है। आपके दिल को छुए तो एक फूल खिलाने की कोशिश आप भी करना।
                    अभी न पूछो हमसे मंज़िल कहाँ है ,
                     अभी तो हमने चलने का इरादा किया है ,
                     न हारे हैं न हारेंगें कभी
                      ये किसी और से नहीं , खुद से वादा किया है।
                                                                                       जय हिन्द

Thursday, 12 November 2015

इन पंक्तियों के साथ सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

हे तमस नाशिनी , दीप स्वामिनी 
दीपावली ! स्वर्ग की मेनका 
इस धरा की शकुन्तला तुम ,
 मदिरालय की हाला 
शिवगंगे का नीर तुम,
 माँ की ममता 
इन नयनों का नूर तुम,
 दुल्हन का श्रृंगार - रूप 
कवि - कल्पना हो तुम। 
आज
 टिमटिमाते तारों जड़ी 
चादर से उतर 
लरजते महावरी पैरों से 
तुमने 
धरा के हृदय - स्थल को छुआ है। 
हमने भी राह में 
 बिछाये हैं 
पलकों के दरीचे। 
महावरी पैरों की छाप 
हमारे आँगन भी लाना । 
हृदय तमस को दूर कर 
ज्योति - पुँज जगाना 
तन - मन भरमाना 
तन - मन भरमाना।

Thursday, 5 November 2015

Shockingly 2 children dead..Posted this news just for awareness. pl read n share

Few days back, in Gurgaon, two healthy school going children of a family found dead in morning in the bed. While finding out probable cause of death, food intake was enquired. They did not ate anything from outside.  However their mother told that she gave a glass of milk before going to bed which is their daily routine. The bowl of milk was checked which was kept in fridge. Shockingly, a 3-4 inch dead black snake was found at bottom of bowl. How it reached in fridge and fell in milk bowl? The family recollected that they brought Palak and kept in fridge. Everything was clear, but their only kids are no more in this world. Kindly be cautious, Food to be kept covered positively and keep a vigil on leafy vegetables. Pl share for awareness to maximum.

कुछ दिन पहले गुड़गाँव में एक परिवार के स्कूल जाने वाले दो बच्चे सुबह बिस्तर पर मृत पाये गये। उनकी मृत्यु के संभव कारणों की जाँच-पड़ताल करते हुए उनके खाने-पीने की पूछताछ की गयी तो बच्चों की माँ ने बताया कि बच्चों ने बाहर की कोई चीज़ नहीं खायी थी। लेकिन रात को सोते समय रोज़ाना की तरह उनको एक गिलासदूध जरूर पिलाया गया था।

जब फ्रिज में रखे हुए दूध के भगौने की जाँच की गयी तो उसके तले में ३-४ इंच का एक साँप का बच्चा मरा हुआ पड़ा मिला। वह फ्रिज में कैसे पहुँचा और दूध के कटोरे में कैसे गिर गया? परिवार ने याद करके बताया कि वे पालक लाये थे और उसे फ्रिज में रखा था। उसी में से निकलकर वह दूध के भगौने में गिर गया होगा। बच्चों की मौत का कारण स्पष्ट हो गया लेकिन परिवार ने अपने दो नौनिहाल खो दिये।

इसलिए फ्रिज में कोई वस्तु विशेष रूप से पत्तेदार भाजी रखने पर हमें बहुत सावधान रहना चाहिए तथा वस्तुओं को ढक कर ही फ्रिज में रखना चाहिए।

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Saturday, 15 August 2015

श्रद्धान्जलि

     दोस्तों ! आज़ादी का जशन अधूरा है अगर हम देश के उन सपूतों को याद ना करें जिन्होंने हँसते - हँसते अपने देश के लिए अपने प्राणों की परवाह नहीं की और उन माता - पिता , बहन या हर उस रिश्ते की , जिसने अपने आँखों के नूर को देश के लिए गर्व के साथ सर्मपित कर दिया।
     श्रद्धान्जलि स्वरूप समर्पित कर रहीं हूँ अपनी उस अभिव्यक्ति को  उन असंख्य जवानों और क्रान्तिकारियों के लिए जो भारत माता को मुक्त कराने के लिए  शहीद हो गए या जो आज भी स्वतन्त्र भारत को स्वतन्त्र बनाए रखने के लिए सिर पर कफन बाँध हर पल तैयार खड़े हैं : वन्दे मातरम् 

Thursday, 30 July 2015

डा• कलाम : "आज़ाद" क्यों कहा ?

दोस्तों ! अपने पिछले tweet में मैंने माननीय कलाम साहब को डा• अब्दुल कलाम आज़ाद के नाम से सम्बोधित किया था ।मेरा सोचना यह है कि सम्भवत: वो ही एक मात्र व्यक्ति ऐसे हैं जो राजनीति में रहे मगर उसकी गन्दगी के छींटे भी नहीं पड़े उनके दामन पर। राष्ट्रपति रहे पर किसी के दबाव में नहीं रहे। मुसलमान थे पर कभी उन पर किसी ने भी कोई सवाल खड़े नहीं किए। मल्लाह थे पर कोई जातिगत् मसला बहस का मुद्दा नहीं बना। या यूँ कहें कि किसी नेता या किसी हिन्दु - मुस्लिम धर्म गुरू का निशाना , कोई सियासी बहस या किसी घोटाले में उनका नाम ,कभी नहीं सुनाई पड़ा । जब भी सुना या पढ़ा - तो सिर्फ उनकी उपलब्धियों के वारे में पढ़ा ।अपने देश को विश्व स्तर पर एक मज़बूत पहचान और जगह दिलायी । युवाओं के साथ - साथ सभी ने उनका नाम सम्मान और प्यार से पुकारा । हर दिल में अपनी जगह बनायी पर किसी ज़ोर ज़बरदस्ती से नहीं बल्कि अपनी क़ाबलियत से , और ये तभी सम्भव है जब कोई शख़्स ज़हनी तौर पर आज़ाद हो।           
          अब आप बताईए - क्या " आज़ाद " का सम्बोधन उनके लिए सटीक सम्बोधन नहीं है ? मेरे लिए तो है। मैं कलाम साहब के लिए मात्र इतना कहूँगी ......
खुली किताब के जैसी है शख़्सियत इनकी
कौन है ऐसा जिसको इन पर नाज़ नहीं
ये आईना हैं
जिसके दिल में कोई राज़ नहीं
                                                नीलिमा कुमार

Tuesday, 28 July 2015

अमूल्य कोहिनूर : डा• अब्दुल कलाम आज़ाद


आज हिन्दुस्तान ने अपने अमूल्य कोहिनूर Dr A P J Abdul Kalam को सदैव के लिए खो दिया है। अल्फाज़ कम भी हैं और छोटे भी हैं उनकी व्याख्या के लिए।बस शत् शत् नमन है डा• कलाम को । मेरी गुज़ारिश है हर उस व्यक्ति से ख़ासकर युवा वर्ग से जिसके लिए वो एक आर्दश थे। उनकी सोच , दिशा एवं आर्दशों को हम अपने दिलों में ज़िन्दा रक्खें और उनके द्वारा दिखाई राह पर सच्चाई से चलें , तो यही होगी
करोड़ों तोपों की सलामी , उनके लिए  जिन्हें हम प्यार करते हैं और जो आपको प्यार किया करते थे।
               " एक श्रद्धान्जलि हमारे दिलों के नेता डा• कलाम के लिए "

Wednesday, 15 July 2015

India News के मंच " जन गण मन" से उठे दो सवाल -

5 जुलाई 2015 को India News के मंच से एक कार्यक्रम प्रसारित हुआ " जन गण मन " ।मुद्दा था इफतार पार्टी का और निशाना थे हमारे प्रघानमंत्री माननीय मोदी जी। मैं उस विषय पर बात नहीं करूंगी कयों कि यह कार्यक्रम पूर्णतया राजनीतिक था, जिसमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। मुझे मात्र दो विषय पर कुछ कहना है (1) इफतार पार्टी को लेकर प्रधानमंत्री पर साधा गया निशाना (2) मौलाना साहेब के द्वारा दिया गया बयान कि यह देश हमारी कौम को यह एहसास तो कराए कि हम उनके अपने हैं।
                  पहले हम बात करेंगें प्रधानमंत्री की। अगर भूतपू्र्व प्रधानमंत्रियों की बात करें तो मेरे विचार से स्वर्गीय श्री राजीव गाँधी ने युवा शक्ति को जाग्रत किया और एक नयी सोच दी अपने राष्ट्र को । तत्पश्चात माननीय अटल जी कुछ नए पहलू लेकर सामने आए और उन्होंने विश्व में एक नयी और मज़बूत पहचान दिलायी हिन्दुस्तान को । उनके बाद किसी ने मज़बूत कदम बढ़ाए हमारे हिन्दुस्तान को विश्व में ऊँचा उठाने के लिए, तो वो हैं माननीय नरेन्द्र मोदी जी। कुछ लोगों का मानना है कि वो अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए ऐसा कर रहें हैं , पर मेरा मानना यह है कि अगर वो ऐसा कर भी रहें हैं तो हर्ज़ा क्या है ? राष्ट्रहित में अगर कुछ सकारात्मक हो रहा है तो होने दें। सोचिए ! इतने वर्षों पश्चात माननीय अटल जी के बाद एक बार फिर किसी अंगद ने मजबूती से अपने पैर जमाए हैं शिखर पर देश को पहुँचाने के लिए , तो मुझे लगता है इसमें राजनीति या मोदी जी में खोट न ढूंढकर हम सभी देशवासियों को उनकी मुठ्ठी बनना चाहिए, उनकी हिम्मत बनना चाहिए। बन्द मुठ्ठी में जो ताकत होती है वो खुले हाथों में नहीं होती । अरे ! इतने अर्सों बाद हमारे सामने एक ऐसा प्रभावशाली व्यक्ति खड़ा है जो विदेशियों के साथ जब खड़ा होता है तो ऐसा लगता है जैसे एक व्यक्ति विशेष नहीं बल्कि पूरा का पूरा हमारा राष्ट्र सिर उठाकर खड़ा है। मैं फिर कह रहीं हूँ कि राजनीति के वारे में मेरा ज्ञान शून्य है । मै किसी पार्टी की हिमायती नहीं हूँ किन्तु इतना जानती हूँ कि यदि कोई व्यक्ति काम कर रहा है और हम उसकी प्रशंसा नहीं कर सकते तो हमें आलोचना भी नहीं करनी चाहिए। ये भी तो हो सकता है कि हमारी अपेक्षाएं मोदी जी से इतनी ज्यादा हों कि अभी तक जो उन्होंनें किया वो हमें समझ ही न आ रहा हो , या जो अभी कर रहें हैं वो हम नहीं समझ पा रहें हैं। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि एक काँच के गिलास में आधा पानी भरकर एक मेज़ पर रख दें और दस लोगों से उस पर टिप्पणी करने को कहें , तो कुछ लोग बोलेगें कि गिलास आधा भरा है तो वहीं कुछ कहेगें कि गिलास आधा खाली है। कहने का तात्पर्य बस इतना है कि सबका नज़रिया खुद हमने कितना पाया या खोया है, इस पर निर्भर करता है , इसी को कहते हैं, या सकारात्मक या नकारात्मक सोच। मेरी आप सभी से विनती है कि खुले दिल से सोचिए फिर तय करिए कि क्या सही है क्या गलत ।  और फिर हम भारतीयों के पास तो इतना ज़बरदस्त हथियार है चुनाव का , नहीं समझ आया तो ये हथियार इस्तेमाल कर लेगें । किसी ने रोका है क्या ?   
                         और इस कार्यक्रम के दौरान मौलाना साहब द्वारा दिए  गए वक्तव्य के सम्बन्ध  में मैं सिर्फ इतना कहूँगी कि जब हमारे हिन्दुस्तान के President बने माननीय डा• ए. पी. जे. अब्दुल कलाम आज़ाद  ,  जस्टिस मोहम्मद हिदायततुल्लाह  , श्री फ़ख़रूद्दीन अली अहमद , डा• ज़ाकिर हुसैन , तो क्या इन्हें हमारे देश ने यह एहसास कराया था कि वो हमारे अपने हैं और तब उन्हें  President  बनाया गया। हम केवल डा• कलाम की बात करें तो सिर्फ यही पाएगें कि हिन्दुस्तान के युवा उनकी पूजा करते हैं , उन्हें follow करते हैं। इसी तरह हमारे देश के उप प्रधानमंत्री श्री हामिद अंसारी , क्या उन्हें भी एहसास कराया गया था कि वो हमारे अपने हैं । या फिल्म जगत से जुड़े आमिर ख़ान , शाहरूख़ ख़ान, सलमान ख़ान , नसीरूद्दीन शाह, जावेद अख़्तर आदि अनगिनत हस्तियाँ हैं जिन्हें इस देश की जनता ने हिन्दू कलाकारों से ज़्यादा प्यार, सम्मान दिया है। दीवानगी की हद तक चाहा है। दिलीप कुमार ( असली नाम - मोहम्मद युसुफ ख़ान ) फिल्म जगत का वो सितारा जिसे हम हिन्दुस्तानियों ने अथाह प्यार दिया , उन्होंने बाबरी मस्ज़िद मसले पर कहा - कि अगर ये हिन्दुओं का धर्मस्थल है तो सभी मुसलमान आगे आएं और उनका धर्मस्थल उन्हें वापस लौटा दें।  "ISKCON"  की प्रतियोगिता में जीत का सेहरा अपने सिर पर बाँध कर अपने हिन्दुस्तान की वो मुस्लिम बेटी , जिसे हिन्दुओं की श्रीमदभगवदगीता कंठस्थ याद है, उसके वारे में क्या कहा जाएगा ? क्या उसने भी गीता तब याद करी होगी जब देश ने उसे बताया कि तुम हमारी अपनी हो ।हमारे राष्ट्र का गौरव है 12 साल की " मरियम आसिफ सिद्दीकी " , और सुनिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तीन मुस्लिम महिलाएं ऐसी भी हैं जो हनुमान जी के मन्दिर पर जाकर सुबह से शाम तक खड़ी हुयी और प्रसाद बाटाँ। ये हैं शाहीन , सोफिया , एवं फराह । शाहीन जिन्हें हनुमान चालीसा कंठस्थ याद है उन्होंने पाँच बड़े मंगल का निर्जला व्रत रक्खा और आखिरी बड़े मंगल को मन्दिर जाकर वहाँ के प्रसाद से अपना व्रत तोड़ा । यहाँ तक कि ये चौंकाने वाली बात है कि लखनऊ में अलीगंज स्थित जिस हनुमान मन्दिर के प्रति हिन्दुओं में इतनी आस्था है और वो मन्दिर जहाँ से कोई खाली हाथ नहीं लौटता , उस मन्दिर की स्थापना तक लखनऊ के नवाब मोहम्मद अलीशाह ने करायी थी।
                 कहने का तात्पर्य मात्र इतना है कि हमारा हिन्दुस्तान एक ऐसा देश है जो सबके लिए अपनी बाँहें फैलाकर खड़ा है , वो सबको अपनी गोदी में पनाह देता है। अगर ये देश भेदभाव कर रहा होता तो कोई मुसलमान , सिक्ख या ईसाई यहाँ तक कि श्रीमती सोनिया गाँधी जो कि एक विदेशी महिला हैं , उच्च स्थान पर पहुँच ही नहीं पाते। मैनें जितने भी नाम ऊपर दिए उनमें से किसी को भी शायद ये एहसास हिन्दुस्तान ने कभी नहीं कराया होगा कि तुम हमारे अपने हो। मगर जो प्यार , इज़्ज़त , दर्ज़ा इन्हें मिला है वो ख़ुद उनके व्यक्तित्व का आईना है। ये तो सभी जानते हैं कि पहले हमें ख़ुद को सिध्द करना होता है तभी हम आवाम के दिल में अपनी जगह बना पाते हैं।
             हमारा हिन्दुस्तान सबके लिए अपनी बाहें फैलाकर खड़ा है उसमें समाकर तो देखो , जो प्यार , इज़्ज़त , अपनापन और सुकून यहाँ मिलेगा, दुनिया का कोई देश सातजन्मों में भी नहीं दे सकता।
                                                    जय हिन्द