दोस्तों ! अपने पिछले tweet में मैंने माननीय कलाम साहब को डा• अब्दुल कलाम आज़ाद के नाम से सम्बोधित किया था ।मेरा सोचना यह है कि सम्भवत: वो ही एक मात्र व्यक्ति ऐसे हैं जो राजनीति में रहे मगर उसकी गन्दगी के छींटे भी नहीं पड़े उनके दामन पर। राष्ट्रपति रहे पर किसी के दबाव में नहीं रहे। मुसलमान थे पर कभी उन पर किसी ने भी कोई सवाल खड़े नहीं किए। मल्लाह थे पर कोई जातिगत् मसला बहस का मुद्दा नहीं बना। या यूँ कहें कि किसी नेता या किसी हिन्दु - मुस्लिम धर्म गुरू का निशाना , कोई सियासी बहस या किसी घोटाले में उनका नाम ,कभी नहीं सुनाई पड़ा । जब भी सुना या पढ़ा - तो सिर्फ उनकी उपलब्धियों के वारे में पढ़ा ।अपने देश को विश्व स्तर पर एक मज़बूत पहचान और जगह दिलायी । युवाओं के साथ - साथ सभी ने उनका नाम सम्मान और प्यार से पुकारा । हर दिल में अपनी जगह बनायी पर किसी ज़ोर ज़बरदस्ती से नहीं बल्कि अपनी क़ाबलियत से , और ये तभी सम्भव है जब कोई शख़्स ज़हनी तौर पर आज़ाद हो।
अब आप बताईए - क्या " आज़ाद " का सम्बोधन उनके लिए सटीक सम्बोधन नहीं है ? मेरे लिए तो है। मैं कलाम साहब के लिए मात्र इतना कहूँगी ......
खुली किताब के जैसी है शख़्सियत इनकी
कौन है ऐसा जिसको इन पर नाज़ नहीं
ये आईना हैं
जिसके दिल में कोई राज़ नहीं
नीलिमा कुमार
Thursday, 30 July 2015
डा• कलाम : "आज़ाद" क्यों कहा ?
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