Sunday 24 April 2016

स्पर्श चिकित्सा - " रेकी " : एक अदभुत पद्धति

दोस्तों ! सबसे पहले तो क्षमा चाहती हूँ कि बहुत समय बाद आज आप सबसे रूबरू हो रही हूँ । मैं एक रेकी चैनल हूँ, इसलिए आज स्पर्श चिकित्सा - रेकी से आप सबका परिचय कराना चाहती हूँ । आपसे आशा यही करती हूँ कि " अपने हाथ जगन्नाथ "की कहावत को चरितार्थ करती इस विद्या को समझकर अपना और अपने परिवार के साथ इस समाज का भी आप कल्याण अवश्य करेंगे । आपका यह प्रयास समाजहित में ही होगा। रेकी एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है , जिसके माध्यम से किसी रोगी की दैहिक , मनोदैहिक एवं मानसिक व्याधि को स्पर्श मात्र से ठीक किया जाता था। ऐसा माना जाता है की जीसस क्राइस्ट एवं महात्मा बुद्ध इस पद्धति से लोगों का उपचार करते थे । उनके बाद यह विद्या तिब्बत के मठों में सीमित रह गई क्योंकि इस विद्या का ज्ञान गुरु अपने शिष्यों को मौखिक रूप से ही देते थे इसलिए इसका स्वरूप दिन प्रतिदिन बदलता रहा किंतु इसका मूल सिद्धांत एवं स्पर्श चिकित्सा पद्धति नहीं बदली । रेकी अपने वर्तमान रूप में जापान के डॉक्टर मिकाऊ उसई के माध्यम से पुनः प्रचलित हुई । गुरु - शिष्य परंपरा में इस विद्या को डॉक्टर चियरो हयाशी व उसके बाद हवायो टकाटा ने सीखा ।हवायो टकाटा ने इस विद्या को पश्चिमी देशों में लोकप्रिय बनाया व उनसे यह विद्या समस्त विश्व में फैली । रेकी एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ " सर्वव्यापी ऊर्जा " है। इस विद्या में रेकी से प्रशिक्षित व्यक्ति जिसे माध्यम अथवा चैनल कहते हैं, ब्रह्मांड में फैली सर्वव्यापी उर्जा को अपने माध्यम से रोगी व्यक्ति के शरीर में स्पर्श द्वारा प्रवाहित करता है ।ऐसा माना जाता है कि हमारे समस्त रोगों की जड़ हमारे नकारात्मक विचार हैं जिनकी अधिकता से रोग हमारे स्थूल शरीर को ग्रसित कर लेते हैं । रेकी की साकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित कर चैनल नकारात्मक विचारों को शरीर से निकाल देता है जिससे व्यक्ति शारीरिक रूप से रोगमुक्त हो जाता है साथ ही मानसिक स्तर पर भी शांति का अनुभव करता है। रेकी का उपयोग ना केवल शारीरिक रोगों को ठीक करने के लिए होता है अपितु मानसिक रोगों व विपरीत स्थितियों के संतुलन में भी इसका उपयोग निश्चित परिणाम देता है। हाँ, किसी भी भौतिक कार्य को करने में उस कार्य व भावना का सही होना जरूरी है अन्यथा रेकी कारगर साबित नहीं होगी । रेकी समय, ज्ञान एवं दूरी से परे है। यह कभी भी, कहीं भी और किसी को भी दी जा सकती है । अपने स्थान पर बैठे-बैठे रेकी चैनल हजारों मील दूर बैठे व्यक्ति को रेकी भेज सकता है, सबसे अच्छी बात यह है कि रेकी कोई भी व्यक्ति सीख सकता है। इसके लिए व्यक्ति विशेष का बहुत अधिक पढ़ा लिखा होना बुद्धिमान होना या अत्यंत एकाग्र बुद्धि होना आवश्यक नहीं है , लेकिन रेकी सीखने या इलाज कराने में मन में विश्वास और समर्पण का होना जरूरी है। वैसे भी रेकी आध्यात्म का एक स्वरुप है ना कि पूजा पाठ का। यदि हम रेकी को एक विज्ञान के रूप में देखें तो अत्यंत सहज व सरल प्रतीत होती है। विश्व में सभी चीजें परमाणु से बनी है जिसमें इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन व न्यूटोन होते हैं । इन सभी घटकों की स्पंदन गति सामान्य रूप से गति करती है जिसके कारण एक बच्चा किसी भी रोग व मनोदैहिक रोग से परे होता है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है उसके विचारों पर क्रमशः माता- पिता, समाज एवं वातावरण का प्रभाव पड़ता है , धीरे धीरे यही प्रभाव उसका स्वभाव निर्धारित करता है। इस पूरी प्रक्रिया में उसके शरीर में विद्यमान परमाणुओं के घटकों की स्पंदन गति धीमी अथवा तेज हो जाती है जोकि कालांतर में मनोदैहिक एवं शारीरिक रोगों का कारण बनती है। रेकी चैनल उस स्थान विशेष व उससे संबंधित चक्रों पर ऊर्जा प्रवाहित कर रोगी की स्पंदन गति को मूल गति पर वापस ला देता है, जिससे वह व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है। रेकी मानव शरीर के अतिरिक्त पेड़ - पौधों , भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति व संबंधों को सुधारने में भी उतनी ही प्रभावी है। यह माने कि रेकी गूंगे का गुड़ है जिसे वह गूंगा ही महसूस कर सकता है जिसने गुड़ खाया हो। रेकी से जुड़ने के बाद ही इसके अप्रत्याशित अनुभवों व परिणामों को समझा व महसूस किया जा सकता है। सार रूप में जिस बीमारी तक किसी और विधा के ज्ञाता नहीं पहुँच पाते वहाँ रेकी स्वयं पहुंचती है। रेकी एक चैनल के शरीर को माध्यम बना रोगी व्यक्ति के शरीर में पहुंचकर रोग की जड़ तक स्वयं पहुंचती है और उसका उपचार करती है। यह पद्धति उस विशालकाय समुद्र की तरह है जिसमें जितनी बार गोते लगाएंगे उतनी बार एक ना एक मोती अवश्य मिलेगा। अगली बार आपको विस्तार से बताएंगे कि इस अदभुत पद्धति की कार्यक्षमता कितनी वृहद् है । धन्यवाद । नीलिमा कुमार