Saturday 26 December 2015

हे अटल ( कवि हृदय )

माननीय अटल जी! जन्मदिन की अनन्त शुभकामनाओं के साथ भेंट स्वरूप यह पंक्तियाँ आपको सर्मपित कर रहीं हूँ  :

हे अटल !  ( कवि हृदय )
तुम्हारी
एक कोशिश
और
बालहठ सी वो जिद थी,
हिन्द - पाक मन एक बने
प्रेम - लौ से हो प्रज्वलित
पर
उठे सवाल कुछ
पुतले फूँके
जन आक्रोश भी कुछ जागा
न हिन्दू 
न मुसलमान
थे नयी नसल के मंसूबे
न खुले कभी
सरहद की बाढ़
बस पनपे यों
नफरत के फूल
तब
सफल हुए तुम
इस कोशिश में
जब -
अँकुर फूटे
क्रिकेट खेल बन,
खेल भावना
मुख़र हुयी
गेदों की तालों में
बजकर,
आतिशबाजी और जन - कोलाहल
बना दृश्य
विहंगम था
जब
शीष चढ़ा सौरव - सेना के
ताज जीत का
सुन्दर था,
और सुन्दर था
पाक जमीं पर
हर पठान
जब शान्त रहा
न उद्धेलित
न विचलित था
न कलुषित उसका
मानस था
हिन्द - शेर भी सौम्य बने
जब
स्वीकारा सैमसंग कप था।
24  मार्च सन् 2004
एक इतिहास सुनहरा है
पाक है हर दिल
हिन्द - पाक का
बीमार नस्ल आतंकी है।
सब पहचाने
चप्पा जाने
यही तुम्हारा
ध्येय बने
ना कुर्सी का लालच हो
न सत्ता मूल्य से ऊपर हो ( जीवन मूल्य )
निज निर्मल मन से
कवि हृदय
तुम बढ़े चलो, तुम बढ़े चलो,
हे अटल !
डटो तुम अटल रहो
सरहद पर फूल उगाने तक।

      ये मेरे दिल के उदगार हैं जो मैनें एक सच्चे कर्मठ और देशभक्त वयक्ति के लिए पन्नों पर उतारे थे। कहने की ज़रूरत नहीं कि इसे मैनें पन्नों पर कब उतारा था।
     हाँ ! सभी लोगों से नम्र निवेदन है कि इसे राजनीति से न जोड़ा जाए क्योंकि यह अभिव्यक्ति उस समय की गई है जब माननीय अटल जी प्रधानमंत्री थे लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि वो किस पार्टी के नेता थे।
                                  नीलिमा कुमार
       

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