दोस्तों ! अपने पिछले tweet में मैंने माननीय कलाम साहब को डा• अब्दुल कलाम आज़ाद के नाम से सम्बोधित किया था ।मेरा सोचना यह है कि सम्भवत: वो ही एक मात्र व्यक्ति ऐसे हैं जो राजनीति में रहे मगर उसकी गन्दगी के छींटे भी नहीं पड़े उनके दामन पर। राष्ट्रपति रहे पर किसी के दबाव में नहीं रहे। मुसलमान थे पर कभी उन पर किसी ने भी कोई सवाल खड़े नहीं किए। मल्लाह थे पर कोई जातिगत् मसला बहस का मुद्दा नहीं बना। या यूँ कहें कि किसी नेता या किसी हिन्दु - मुस्लिम धर्म गुरू का निशाना , कोई सियासी बहस या किसी घोटाले में उनका नाम ,कभी नहीं सुनाई पड़ा । जब भी सुना या पढ़ा - तो सिर्फ उनकी उपलब्धियों के वारे में पढ़ा ।अपने देश को विश्व स्तर पर एक मज़बूत पहचान और जगह दिलायी । युवाओं के साथ - साथ सभी ने उनका नाम सम्मान और प्यार से पुकारा । हर दिल में अपनी जगह बनायी पर किसी ज़ोर ज़बरदस्ती से नहीं बल्कि अपनी क़ाबलियत से , और ये तभी सम्भव है जब कोई शख़्स ज़हनी तौर पर आज़ाद हो।
अब आप बताईए - क्या " आज़ाद " का सम्बोधन उनके लिए सटीक सम्बोधन नहीं है ? मेरे लिए तो है। मैं कलाम साहब के लिए मात्र इतना कहूँगी ......
खुली किताब के जैसी है शख़्सियत इनकी
कौन है ऐसा जिसको इन पर नाज़ नहीं
ये आईना हैं
जिसके दिल में कोई राज़ नहीं
नीलिमा कुमार
Thursday, 30 July 2015
डा• कलाम : "आज़ाद" क्यों कहा ?
Tuesday, 28 July 2015
अमूल्य कोहिनूर : डा• अब्दुल कलाम आज़ाद
आज हिन्दुस्तान ने अपने अमूल्य कोहिनूर Dr A P J Abdul Kalam को सदैव के लिए खो दिया है। अल्फाज़ कम भी हैं और छोटे भी हैं उनकी व्याख्या के लिए।बस शत् शत् नमन है डा• कलाम को । मेरी गुज़ारिश है हर उस व्यक्ति से ख़ासकर युवा वर्ग से जिसके लिए वो एक आर्दश थे। उनकी सोच , दिशा एवं आर्दशों को हम अपने दिलों में ज़िन्दा रक्खें और उनके द्वारा दिखाई राह पर सच्चाई से चलें , तो यही होगी
करोड़ों तोपों की सलामी , उनके लिए जिन्हें हम प्यार करते हैं और जो आपको प्यार किया करते थे।
" एक श्रद्धान्जलि हमारे दिलों के नेता डा• कलाम के लिए "
Wednesday, 15 July 2015
India News के मंच " जन गण मन" से उठे दो सवाल -
5 जुलाई 2015 को India News के मंच से एक कार्यक्रम प्रसारित हुआ " जन गण मन " ।मुद्दा था इफतार पार्टी का और निशाना थे हमारे प्रघानमंत्री माननीय मोदी जी। मैं उस विषय पर बात नहीं करूंगी कयों कि यह कार्यक्रम पूर्णतया राजनीतिक था, जिसमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। मुझे मात्र दो विषय पर कुछ कहना है (1) इफतार पार्टी को लेकर प्रधानमंत्री पर साधा गया निशाना (2) मौलाना साहेब के द्वारा दिया गया बयान कि यह देश हमारी कौम को यह एहसास तो कराए कि हम उनके अपने हैं।
पहले हम बात करेंगें प्रधानमंत्री की। अगर भूतपू्र्व प्रधानमंत्रियों की बात करें तो मेरे विचार से स्वर्गीय श्री राजीव गाँधी ने युवा शक्ति को जाग्रत किया और एक नयी सोच दी अपने राष्ट्र को । तत्पश्चात माननीय अटल जी कुछ नए पहलू लेकर सामने आए और उन्होंने विश्व में एक नयी और मज़बूत पहचान दिलायी हिन्दुस्तान को । उनके बाद किसी ने मज़बूत कदम बढ़ाए हमारे हिन्दुस्तान को विश्व में ऊँचा उठाने के लिए, तो वो हैं माननीय नरेन्द्र मोदी जी। कुछ लोगों का मानना है कि वो अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए ऐसा कर रहें हैं , पर मेरा मानना यह है कि अगर वो ऐसा कर भी रहें हैं तो हर्ज़ा क्या है ? राष्ट्रहित में अगर कुछ सकारात्मक हो रहा है तो होने दें। सोचिए ! इतने वर्षों पश्चात माननीय अटल जी के बाद एक बार फिर किसी अंगद ने मजबूती से अपने पैर जमाए हैं शिखर पर देश को पहुँचाने के लिए , तो मुझे लगता है इसमें राजनीति या मोदी जी में खोट न ढूंढकर हम सभी देशवासियों को उनकी मुठ्ठी बनना चाहिए, उनकी हिम्मत बनना चाहिए। बन्द मुठ्ठी में जो ताकत होती है वो खुले हाथों में नहीं होती । अरे ! इतने अर्सों बाद हमारे सामने एक ऐसा प्रभावशाली व्यक्ति खड़ा है जो विदेशियों के साथ जब खड़ा होता है तो ऐसा लगता है जैसे एक व्यक्ति विशेष नहीं बल्कि पूरा का पूरा हमारा राष्ट्र सिर उठाकर खड़ा है। मैं फिर कह रहीं हूँ कि राजनीति के वारे में मेरा ज्ञान शून्य है । मै किसी पार्टी की हिमायती नहीं हूँ किन्तु इतना जानती हूँ कि यदि कोई व्यक्ति काम कर रहा है और हम उसकी प्रशंसा नहीं कर सकते तो हमें आलोचना भी नहीं करनी चाहिए। ये भी तो हो सकता है कि हमारी अपेक्षाएं मोदी जी से इतनी ज्यादा हों कि अभी तक जो उन्होंनें किया वो हमें समझ ही न आ रहा हो , या जो अभी कर रहें हैं वो हम नहीं समझ पा रहें हैं। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि एक काँच के गिलास में आधा पानी भरकर एक मेज़ पर रख दें और दस लोगों से उस पर टिप्पणी करने को कहें , तो कुछ लोग बोलेगें कि गिलास आधा भरा है तो वहीं कुछ कहेगें कि गिलास आधा खाली है। कहने का तात्पर्य बस इतना है कि सबका नज़रिया खुद हमने कितना पाया या खोया है, इस पर निर्भर करता है , इसी को कहते हैं, या सकारात्मक या नकारात्मक सोच। मेरी आप सभी से विनती है कि खुले दिल से सोचिए फिर तय करिए कि क्या सही है क्या गलत । और फिर हम भारतीयों के पास तो इतना ज़बरदस्त हथियार है चुनाव का , नहीं समझ आया तो ये हथियार इस्तेमाल कर लेगें । किसी ने रोका है क्या ?
और इस कार्यक्रम के दौरान मौलाना साहब द्वारा दिए गए वक्तव्य के सम्बन्ध में मैं सिर्फ इतना कहूँगी कि जब हमारे हिन्दुस्तान के President बने माननीय डा• ए. पी. जे. अब्दुल कलाम आज़ाद , जस्टिस मोहम्मद हिदायततुल्लाह , श्री फ़ख़रूद्दीन अली अहमद , डा• ज़ाकिर हुसैन , तो क्या इन्हें हमारे देश ने यह एहसास कराया था कि वो हमारे अपने हैं और तब उन्हें President बनाया गया। हम केवल डा• कलाम की बात करें तो सिर्फ यही पाएगें कि हिन्दुस्तान के युवा उनकी पूजा करते हैं , उन्हें follow करते हैं। इसी तरह हमारे देश के उप प्रधानमंत्री श्री हामिद अंसारी , क्या उन्हें भी एहसास कराया गया था कि वो हमारे अपने हैं । या फिल्म जगत से जुड़े आमिर ख़ान , शाहरूख़ ख़ान, सलमान ख़ान , नसीरूद्दीन शाह, जावेद अख़्तर आदि अनगिनत हस्तियाँ हैं जिन्हें इस देश की जनता ने हिन्दू कलाकारों से ज़्यादा प्यार, सम्मान दिया है। दीवानगी की हद तक चाहा है। दिलीप कुमार ( असली नाम - मोहम्मद युसुफ ख़ान ) फिल्म जगत का वो सितारा जिसे हम हिन्दुस्तानियों ने अथाह प्यार दिया , उन्होंने बाबरी मस्ज़िद मसले पर कहा - कि अगर ये हिन्दुओं का धर्मस्थल है तो सभी मुसलमान आगे आएं और उनका धर्मस्थल उन्हें वापस लौटा दें। "ISKCON" की प्रतियोगिता में जीत का सेहरा अपने सिर पर बाँध कर अपने हिन्दुस्तान की वो मुस्लिम बेटी , जिसे हिन्दुओं की श्रीमदभगवदगीता कंठस्थ याद है, उसके वारे में क्या कहा जाएगा ? क्या उसने भी गीता तब याद करी होगी जब देश ने उसे बताया कि तुम हमारी अपनी हो ।हमारे राष्ट्र का गौरव है 12 साल की " मरियम आसिफ सिद्दीकी " , और सुनिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तीन मुस्लिम महिलाएं ऐसी भी हैं जो हनुमान जी के मन्दिर पर जाकर सुबह से शाम तक खड़ी हुयी और प्रसाद बाटाँ। ये हैं शाहीन , सोफिया , एवं फराह । शाहीन जिन्हें हनुमान चालीसा कंठस्थ याद है उन्होंने पाँच बड़े मंगल का निर्जला व्रत रक्खा और आखिरी बड़े मंगल को मन्दिर जाकर वहाँ के प्रसाद से अपना व्रत तोड़ा । यहाँ तक कि ये चौंकाने वाली बात है कि लखनऊ में अलीगंज स्थित जिस हनुमान मन्दिर के प्रति हिन्दुओं में इतनी आस्था है और वो मन्दिर जहाँ से कोई खाली हाथ नहीं लौटता , उस मन्दिर की स्थापना तक लखनऊ के नवाब मोहम्मद अलीशाह ने करायी थी।
कहने का तात्पर्य मात्र इतना है कि हमारा हिन्दुस्तान एक ऐसा देश है जो सबके लिए अपनी बाँहें फैलाकर खड़ा है , वो सबको अपनी गोदी में पनाह देता है। अगर ये देश भेदभाव कर रहा होता तो कोई मुसलमान , सिक्ख या ईसाई यहाँ तक कि श्रीमती सोनिया गाँधी जो कि एक विदेशी महिला हैं , उच्च स्थान पर पहुँच ही नहीं पाते। मैनें जितने भी नाम ऊपर दिए उनमें से किसी को भी शायद ये एहसास हिन्दुस्तान ने कभी नहीं कराया होगा कि तुम हमारे अपने हो। मगर जो प्यार , इज़्ज़त , दर्ज़ा इन्हें मिला है वो ख़ुद उनके व्यक्तित्व का आईना है। ये तो सभी जानते हैं कि पहले हमें ख़ुद को सिध्द करना होता है तभी हम आवाम के दिल में अपनी जगह बना पाते हैं।
हमारा हिन्दुस्तान सबके लिए अपनी बाहें फैलाकर खड़ा है उसमें समाकर तो देखो , जो प्यार , इज़्ज़त , अपनापन और सुकून यहाँ मिलेगा, दुनिया का कोई देश सातजन्मों में भी नहीं दे सकता।
जय हिन्द